पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली.djvu/२६५

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अब हम यह प्रश्न लेते हैं कि मनुष्य महत् कैसे है। इसका समझना अत्यंत आवश्यक है। यह महत् ही अहंकार हो जाता है; यही शरीर में बल का कारण है। यह चित्, अतिचित् और उपचित् में व्याप्त है। यह तीनों अवस्थाएँ हैं क्या? उप- चित् पशुओं में पाया जाता है जिसे सहज ज्ञान कहते हैं। यह अचूक होता है, पर अत्यंत परिमित होता है। सहज ज्ञान बहुत कम चूक करता है। पशु अपने सहज ज्ञान से विषैले पौधों को पहचानते हैं वा जान जाते हैं। पर उनका सहज ज्ञान बहुत स्वल्प होता है। ज्यों ही कोई नया पदार्थ सामने आ जाता है, पशु चकरा जाता है। वह कल के समान काम करता रहता है। इसके परे ऊँचे प्रकार का ज्ञान आता है। इसमें चूक होती है और वह प्रायः भूल किया करता है। इसका क्षेत्र विस्तृत और गति धीमी होती है। इसे बुद्धि वा तर्क कहते हैं। यह सहज ज्ञान से कहीं बड़ी होती है; पर सहज ज्ञान बुद्धि की अपेक्षा अधिक निश्चायक होता है। बुद्धि से सहज ज्ञान की अपेक्षा अधिक भूल होने की संभावना है। मन की एक और ऊँची अवस्था है जिसे अतिचित् कहते हैं। यह योगियों में और उनमें होती है जो लोग इसे प्राप्त करते हैं। यह अचूक होती है और इसका क्षेत्र बुद्धि से कहीं अधिक विस्तृत होता है। यही उसकी सर्वोच्च दशा है। अतः हमें स्मरण रखना चाहिए कि महत्तत्व ही सबका कारण है। वही भिन्न भिन्न रूपों में अभिव्यक्त होता है और ज्ञान के तीनों