पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली.djvu/२६९

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किससे मिलावें? यही कारण है कि हम इसके पीछे सिर खपा रहे हैं, इसे भयानक समझ रहे हैं, भला-बुरा कह रहे हैं। कभी कभी हम इसे अच्छा समझते हैं, पर हम इसे सदा अधूरा समझते हैं। इसका ज्ञान तभी हो सकता है जब इसके जोड़ का कोई दूसरा मिले। हम इसे तभी जानेंगे जब हम विश्व और चित्त दोनों से परे निकल जायँ; तभी विश्व के रहस्य का पता चलेगा। जब तक हम ऐसा न करें, हमारा दीवार पर सारा सिर पटकना निरर्थक है; क्योंकि बिना तद्रूप संस्कार के ज्ञान हो नहीं सकता और इस लोक में केवल ऐसा एक ही प्रत्यक्ष ज्ञान है। ऐसा ही ईश्वर के संबंध का भी विचार है। जो कुछ हम ईश्वर के संबंध में देखते हैं, वह एक अंश मात्र है। हमें विश्व के एक अंश मात्र का ही बोध होता है; शेष मनुष्य की पहुँच के बाहर है। ‘मैं विश्वात्मा इतना बड़ा हूँ कि यह विश्व मेरा एक अंश मात्र है। यही कारण है कि हमें ईश्वर पूर्ण रूप से दिखाई नहीं पड़ता और हम उसे जान नहीं सकते। ईश्वर या विश्व के जानने का यही एक उपाय है कि हम बुद्धि और चित्त से परे हो जायँ। जब आप श्रोत्र और श्रोतव्य, ज्ञान और ज्ञातव्य से परे हो जायँगे, तभी आप सत्य को जान सकेंगे। ‘त्रैगुण्य विषया वेदाः निस्त्रै गुण्यो- भवार्जुन।’ जब हम उनसे मुक्त हो जायँगे, तभी हममें सम- दर्शिता आवेगी, अन्यथा नहीं।

सूक्ष्म और स्थूल जगत् का संघटन एक ही प्रकार का है।