पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली.djvu/३१८

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जली टूट गई और गैस निकलने लगी। कहीं साँस लेने से गैस उनके भीतर चली गई। उससे उन्हें थोड़ी देर के लिये देह को सुधि भूल गई और वही पदार्थ जो उन्हें स्थूल रूप मेंदे ख पड़ते थे, विचार वा मनोरूप में दिखाई पड़ने लगे। थोड़ी देर तक वे उसी दशा में पड़े रहे। फिर उन्होंने अपने शिष्यों से उस अवस्था का वर्णन इस प्रकार किया कि उस दशा में हमें सारा विश्व विचार-संभूत देख पड़ता था। उस गैस के प्रभाव से हम थोड़े काल के लिये विदेह हो गए थे और जो हमें पहले शरीर से रूप में देख पड़ता था, उसी को हम विचार के रूप में देखने लगे थे। जब ज्ञान की दशा उससे भी अधिक उच्च हो जाती है, जब यह छोटे ज्ञान सदा के लिये जाते रहते हैं, तब उसका प्रकाश दिखाई पड़ता है जो इसके परे है। तब हमें सच्चिदानंद विश्वात्मा के दर्शन होते हैं और उस ब्रह्म का साक्षात् हो जाता है जो ज्ञानस्वरूप, आनंद-स्वरूप, अनुपम, अप्रमेय, नित्य शुद्ध बुद्ध, मुक्तखभाव, आकाशवत्, सर्वगत, अनंत और निर्विकार है। वह आपके अंतःकरण में, ध्यान में प्रकट होगा, साक्षात् दर्शन देगा।

अब यह सुनिए कि अद्वैत सिद्धांत से स्वर्ग नरकादि की बातों का जिन्हें भिन्न भिन्न धर्मवाले मानते हैं,समाधान क्या है। जब कोई मनुष्य मर जाता है, तब लोग कहा करते हैं कि वह स्वर्ग में जाता है, नरक में जाता है, यहाँ जाता है, वहाँ जाता है, मरकर पुनः जन्म लेता है, स्वर्ग में शरीर धारण करता है, दूसरे

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