पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली.djvu/३३

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यदि हम उन लोगों को जो हमारे पीछे आनेवाले हैं, सत्य को बतला न सकें? अतः यह अच्छा जान पड़ता है कि इसकी अवांतर श्रेणियों की जाँच की जाय। सब से पहली आवश्यक बात तो यह है कि बुद्धि के कामों को अलग कर दिया जाय; क्योंकि हम जानते हैं कि बुद्धिमत्ता कुछ है नहीं। इसमें तो अंतःकरण ही सब से अधिक प्रधान है। आत्म का दर्शन अंतःकरण ही में होता है, बुद्धि द्वारा उसे नहीं देख सकते। बुद्धि तो झाडू देनेवाली है। वह हमारे लिये राह साफ करती है। वह गौण है और चौकीदार का काम करती है। पर चौकीदार की अनिवार्य्य आवश्यकता समाज के काम के लिये नहीं है। वह तो केवल अव्यवस्था मिटाने के लिये है, दोषों को रोकने के लिये है। यही काम है जो बुद्धि से लिया जा सकता है। जब आप किसी ज्ञान की पुस्तक को पढ़ते हैं और जब आप उसे पढ़ चुकते हैं तब आपको जान पड़ता है कि ‘धन्य है ईश्वर जिससे हम निकले हैं’। कारण यह कि बुद्धि अंधी है। उसमें आपसे आप गति कहाँ? उसके न तो हाथ हैं न पैर। वह बोध है जिसकी गति विद्युत् वा अन्य पदार्थों से द्रुततर है। अब प्रश्न यह है कि क्या आपको बोध है? यदि है तब तो आप भगवान् को देख सकते हैं। यह वही बोध है जो आज आपको है; वही बढ़ता जाता है, देवरूप धारण करता जाता है और उच्च अवस्था को प्राप्त हो जाता है, यहाँ तक कि सब में एक ही दिखाई पड़ता है और यहाँ तक कि ब्रह्म ही ब्रह्म सब में देख पड़ने लगता है।