पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली.djvu/३८

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चारों दिशाएँ ब्रह्म का एक एक पाद हैं। अग्नि भो तुझे ब्रह्म ज्ञान की शिक्षा देगा।’ उस समय अग्नि एक बड़ी प्रतीक थी। प्रत्येक ब्रह्मचारी अग्नि की परिचर्य्या किया करताथा और उसमें आहुतियाँ देता था। इस प्रकार दूसरे दिन सत्यकाम गुरु के घर चला। मार्ग में जहाँ सायंकाल हुआ, वह अग्निहोत्र करने लगा। अग्नि के पास बैठा ही था कि अग्नि उससे बोला―‘सत्य- काम’। सत्यकाम ने कहा―‘भगवन् , क्या कहते हैं?’ संभव है कि आपको इससे प्राचीन नियम की धर्म-पुस्तक की उस कथा का स्मरण आ जाय कि सेमुअल ने कैसे अलौकिक शब्द सुना था। अग्नि ने कहा―‘सत्यकाम’ मैं तुम्हें ब्रह्म का कुछ उपदेश देने आया हूँ। यह पृथ्वी ब्रह्म का एक पाद है, आकाश दूसरा पाद, अंतरिक्ष तीसरा पाद और समुद्र चौथा पाद है।’ फिर अग्नि ने कहा―‘एक पक्षी भी तुम्हें कुछ शिक्षा देगा।’ सत्य- काम आगे चला और जब बह सायंकाल का अग्निहोत्र कर चुका तो एक हंस उसके पास आया और बोला―‘मैं तुझे ब्रह्म- शिक्षा दूँँगा। अग्नि ब्रह्म का एक पाद है, सूर्य्य दूसरा, चंद्रमा तीसरा और विद्युत् चौथा पाद है। अब मद्गु नामक एक पक्षी तुझे ब्रह्म का और उपदेश करेगा।’ दूसरे दिन सायंकाल सत्य- काम के पास मद्गु पक्षी आया और कहने लगा―‘सत्यकाम, मैं तुझे ब्रह्म का उपदेश करूँगा। ब्रह्म का एक पाद घ्राण है, दूसरा चक्षु, तीसरा श्रोत्र और चौथा मन है।’ अब उस बालक ने आचार्य्य-कुल में आकर आचार्य्य को अभिवादन