पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली.djvu/४७

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की उपाधि है, क्षणिक हैं। यह पृथ्वी क्षणिक है, इसमें नाम- रूप की उपाधि है। इसी प्रकार स्वर्ग भी क्षणिक होगा क्योंकि उसमें भी नाम-रूप की उपाधि लगी है। यह बात कि स्वर्ग नित्य है, परस्पर विरुद्ध है; क्योंकि जिनमें नामरूप है, वे काल ही में उपजते, काल ही में रहते और काल ही में नष्ट हो जाते हैं। यह वेदांत का निश्चित ध्रुव सिद्धांत है। और यही कारण है कि स्वर्ग की कामना का त्याग किया जाता है।

हम संहिता में देख चुके हैं कि उनमें स्वर्ग नित्य माना गया था; और उसीसे मिलता जुलता विचार मुसलमानों और ईसाइयों में भी प्रचलित है। मुसलमानों ने उसे और स्थूल बना लिया है। उनका कथन है कि स्वर्ग में बाग है और उसके किनारे नहरें बहती हैं। अरब की मरुभूमि में पानी नहीं मिलता। वहाँ उसका बड़ा मूल्य है; इसी लिये मुसलमान यह समझते हैं कि स्वर्ग वही है जिसमें बहुत पानी हो। मेरा तो जन्म ऐसे देश का है जहाँ वर्ष में ६ महीने पानी हो बरसा करता है। मैं तो उसे स्वर्ग समझूँगा जहाँ सूखी भूमि हो; और यही अँग्रेजों को भी अभीष्ट होगा। संहिता का स्वर्ग शाश्वत है। वहाँ मृत आत्माएँ सुंदर शरीर धारण करके अपने पितरों के साथ सदा सुख से रहती हैं। वहाँ उनके माता-पिता, लड़के-वाले, इष्ट-मित्र मिलते हैं और जैसे यहाँ जीवन निर्वाह करते हैं, वैसे वहाँ भी वे अपने दिन बिताते हैं। केवल सुख कुछ विशेष होता है। यहाँ के सारे बाधा-विघ्न जो सुख-संपादन में पड़ा करते हैं,