पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली खंड 3.djvu/८२

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कर्मयोग
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पड़ो। घर जाओ।" दूसरे दिन वह फिर उनके पास गया और रोने-धोने लगा-"कृपा कर मुझे प्रेत को वश में करना सिखा दीजिये। मुझे अपना काम कराने के लिये प्रेत को बहुत जरूरत है।" महात्मा ऊवकर बोले,-"लो यह मंत्र ; इसका जप करो। प्रेत तुम्हारे वश में हो जायगा और उससे जो-जो कुछ भी कहोगे, वह करेगा। परन्तु सावधान रहना; प्रेत को वश में रखना खेल नहीं। उसे सदा काम में लगाये रखना। वह खाली हुआ नहीं कि तुम्हारी जान पर बन आई।" उसने उत्तर दिया,-"यह कौन-सी बड़ी बात है। मैं उसे इतने काम बताऊँगा कि वह जिंदगी भर न कर पायेगा।" इसके बाद वह एक घने जंगल में जाकर मंत्र जपने लगा; नियमित समय के पश्चात् एक उग्र रूप प्रेत प्रकट हुआ और अपने बड़े-बड़े दाँत दिखाकर बोला,- "में प्रेत हूँ। तुम्हारे मंत्र-बल से मैं तुम्हारे वश में हूँ। परंतु मुझे लगातार काम में लगाये रखना। जिस क्षण तुम काम न बता पाये, मैं तुम्हारी जान ले लूंगा।" उस आदमी ने कहा,-"एक महल बनाओ।" प्रेत बोला, "अच्छा, लो यह महल तैयार है।" "मुझे खूब-सा धन ला दो",-फिर उसने कहा। प्रेत वोला,-"लो यह धन ।" "यह वन सब जड़ से उखाड़कर उसकी जगह एक नगर बसा दो !” “यह भी हो गया,"-प्रेत ने कहा "और कुछ ?" अब वह आदमी डरा और मन में कहने लगा,-"इसे और काम मैं नहीं बता सकता, पलक मारते तो यह सब कर डालता है।" प्रेत बोला,-"कुछ काम