पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली खंड 3.djvu/८४

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कर्मयोग
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कमी नहीं पड़ा। मैं पुराना प्रेत हूँ, परन्तु ऐसा काम कभी नहीं करना पड़ा।" "आओ, हम-तुम सुलह कर लें", --वह उस आदमी से बोला, "तुम मुझे जाने दो और जो कुछ मैंने तुम्हें दिया है, मैं वह सब तुम्हारे पास रहने दूँगा और वादा करता हूँ कि फिर तुम्हें कभी तकलीफ न पहुँचाऊँगा।" यह सुन वह आदमी बहुत खुश हुआ और उसने प्रेत का सुलहनामा मजे में स्वीकार कर लिया।

यह दुनिया कुत्ते की टेढ़ी पूँछ है। मनुष्य उसे अपने-अपने ढंग से सीधा करने की युगों से चेष्टा करते आये हैं ; परंतु जहाँ वह उनके हाथ से छूटी, वह फिर पहले की तरह टेढ़ी- की-टेढ़ी हो गई। परंतु इसके सिवा हो ही क्या सकता है ? जब मनुश्य अनासक्त हो कर्म करना सीख लेगा, तभी उसका अंधविश्वास दूर होगा। जब हम जानते हैं कि दुनिया कुत्ते की पूँछ की तरह टेढ़ी ही रहेगी और हमारी इच्छानुसार सीधी न होगी तब हमें विश्वासांध न हो जाना चाहिये । अन्धविश्वासी अनेक प्रकार के होते हैं-सिगरेट-विरोधी, सुरा-विरोधी इत्यादि । इसी कक्षा में एक वार एक युवती थी ; वह उन कतिपय स्त्रियों में से एक थी जिन्होंने शिकागो में मजदूरों के लिये एक भवन वनवाया है, जहाँ वे उनके लिये कुछ व्यायाम और संगीत का आयोजन करती हैं। एक दिन उस युवती से मेरी बातचीत हो रही थी ; उसने कहा कि "शराब, सिगरेट आदि सभी बुराइयों का मेरे पास इलाज है" । मैंने उससे पूछा, "क्या ?" तो वह बोली .