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पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली खंड 3.djvu/८८

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कर्मयोग
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प्रचारक है" और वे उन्हें धन तथा अन्य वस्तुएँ देती हैं। दुनिया की गाड़ी इसी तरह चल रही है। जीवन ऐसा खेल नहीं ; कुछ इससे अधिक गम्भीर, सोचने और समझने योग्य !

आज के व्याख्यान की ये मुख्य बातें आप लोगों के स्मरण के लिये हैं। पहले हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि हम दुनिया के देनदार हैं । दुनिया हमारी नहीं । हमारे लिये यह परम सौभाग्य की बात है, यदि हम उसके लिये कुछ कर सकते हैं । परोपकार में हमारी हो भलाई होती है। दूसरी बात ध्यान में रखने को यह है कि इस सृष्टि में एक ईश्वर है। यह सत्य नहीं कि पथभ्रष्ट संसार को तुम्हारी सहायता की आवश्यकता है ईश्वर उसमें सदा विद्यमान है। वह अनवरत कर्म में लगा हुआ अमर है तथा उसे सभी का ध्यान रहता है। जब समस्त सृष्टि सोती है, तब वह सोता नहीं। वह अविराम कर्म करता है; संसार के आवर्तन-परिवर्तन उसी के हैं। तीसरे हमें किसी से घृणा न करनी चाहिये । संसार में सुख और दुख दोनों रहेंगे। हमारा कर्तव्य है कि हम निर्बल और पापी से भी सहानुभूति रखे। यह संसार चरित्र-गठन की एक महती व्यायामशाला है, जहाँ हम सभी को कसरत कर अधिकाधिक अध्यात्म-शक्ति- संपन्न होना है। चौथे हमें किसी प्रकार की भी कट्टरता अपने पास न फटकने देनी चाहिये। कट्टरता प्रेम की शत्रु है। आप लोगों ने कट्टरपंथियों को कहते सुना होगा-"हम पापी से नहीं पाप से घृणा करते हैं"; परंतु उस मनुष्य का मुहँ