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यंत्रो की सहायता से हमारी दृष्टि अत्यंत विस्तृत और सूक्ष्म हो गई। दूरदर्शक यंत्रों द्वारा अंतरिक्ष के बीच अनंत लोकपिंडो का पता लगा; उनकी स्थिति के क्रम का आभास मिला और रश्मिविश्लेषक यंत्र द्वारा यह प्रत्यक्ष हो गया कि जिन मूलभूतो या द्रव्यो से हमारी पृथ्वी बनी है उन्हीं द्रव्यों से सब लोकापिंड बने हैं, उनमें कोई अतिरिक्त द्रव्य नहीं है । पहले पृथ्वी, जल, वायु आदि के आगे लोगो की दृष्टि नहीं जाती थी अब रसायन शास्त्र के विश्लेषणो द्वारा जल और वायु आदि की योजना करनवाले मूलभूतों या द्रव्यों तक हमारी पहुँच हो गई है । भौतिक विज्ञान ने समस्त जड़ जगत् को द्रव्य और गति शक्ति का काय्य सिद्ध कर दिया है।

द्रव्य * को नाना रूपो मे हम अपने चारो ओर देखते हैं । हवा, पानी, पत्थर, पृथ्वी, सूर्य्य, चद्र इत्यादि सब द्रव्य के ही भिन्न भिन्न रूप है। द्रव्य से हम गति भी देखते है । हवा का चलना, पानी का बहना, पत्थर का लुढ़कना, पत्ते का


के वायुमंडल में चाँदी, लोहा, सीसा, राँगा, जस्ता, अलुमीनम, सोडियम, पोटासियम, कारवन ( अगारक ), - हाइड्रोजन आदि ३६ मूल द्रव्यों का होना स्थिर किया गया है। इसी प्रकार ग्रहों के संबंध में समझिए जो सूर्य की अपेक्षा कहीं अधिक निकट है ।

* द्रव्य शब्द का अर्थ केवल भू-समष्टि के अर्थ में समझिए । वैशेपिक में द्रव्य के अतर्गत काल, दिक्, आत्मा और मन भी हैं, पर इसके अंतर्गत नहीं ।