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योजना मे अब तक जो असफलता होती आई है वह इस कारण कि सजीव द्रव्य के मूल आदिम रूप की उन्हे ठीक धारणा ही नहीं रही है। वे अमीबा ( अणुजीव) या अणूद्भिद् को आदिम रुप मान कर चले है। पर अमीबा या अणूद्भिद् का जिस जटिल रूप में हम देखते हैं वह लाखो वर्ष की विकाशपरपरा का परिणाम है। अतः सजीव द्रव्य का आदिम रूप इन दोनो से कही सूक्ष्म और सादा रहा होगा। अणुजीव और अणूद्गिद् दोनों का आहार सजीव द्रव्य है। अतः ये आदिम नमूने कभी नही हो सकते। सजीव द्रव्य का आदिम रूप उद्भिदो का सो रहा होगा जो निर्जीव द्रव्य को सजीव द्रव्य ( शरीरधातु ) में परिणत कर सकते हैं। प्रथम जीवोत्पत्ति जल मे ही हुई इसका एक नया प्रमाण एक फरासीसी शरीरविज्ञानी ने उपस्थित किया है। उसने कहा है कि रक्त मे लवण आदि का योग उसी हिसाब से है जिस हिसाब से पूर्वकाल के समुद्रजल में रहा होगा।

पहले के वैज्ञानिको को परमाणुओ के भीतर की गतिशक्ति की ओर ध्यान नही था, इससे द्रव्य की मूल व्यष्टियो के व्यापार को समझने के लिये उन्हे शक्ति का बाहर से आरोप करना पड़ता था। पर अब, जैसा कि पहले कहा जा चुका है, रोडियम के मिलने से परमाणु के भीतर विद्युच्छक्ति के केद्रो का पता मिल गया है जिससे सजीव और निर्जीव द्रव्य का अंतर बहुत कुछ कम हो गया है। कुछ विशेष प्रकार के परमाणु किण्व या खमीर ( जो वास्तव में सूक्ष्मातिसूक्ष्म किण्वाणुओ या अणूद्भिदो द्वारा संघटित होता है) का काम करते हैं। आजकल