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कई रासायनिकों ने विशेष विशेष परमाणुओ के योग से ही ( महुए, आटे, राई आदि सजीव द्रव्य के अवशेषों से तो लोग बहुत दिनों से बनाते आते हैं ) मदसार ( अलकोहल ) और कुछ सादे प्रकार के प्रोटीन ( शरीरधातु ) तक संघटित कर लिए हैं। ये द्रव्य पहले पौधों या जंतुओं के शरीरद्रव्य में ही पाए जाते थे इससे लोग समझते थे कि ये शरीर के भीतर ही बन सकते हैं। पहले इन शरीरद्रव्यों से संबंध रखनेवाले रसायनशास्त्र का अलग विभाग था। पर अब यह भेद नहीं रहा। रसायनशास्त्र से शरीरद्रव्य और साधारण द्रव्य का भेद अब उठ गया।

किण्वसम्बन्धी रसायन बरावर उन्नति करता जा रहा है। कई प्रकार के किण्व या खमीर, पौधो या जंतुओं से प्राप्त शरीरद्रव्य के आश्रय के विना, कुछ मूल द्रव्यों के परमाणुओं के योग में बना लिए गए हैं। सजीव द्रव्य क्री उत्पत्ति के पास तक यही विधान पहुँच सका है, और इसीसे बहुत कुछ आशा है। सजीवता वा जीवन वास्तव में किण्वपरपरा ही हैं *। जितने सजीव पदार्थ हैं सबके शरीर मे किण्व वर्तमान है। किण्वक्रिया के बंद होते ही जीव मर जाते हैं। गर्भपिंड से लेकर जीवो की जो अंगवृद्धि होती है वह अकुरघटक के भीतर किण्वविधान के ही अनुसार।


• पृथिव्याहीनि भूतानि चत्वारितत्वानि तेभ्य एव देहातारपरिण सेभ्यः किण्वादिभ्यो मदशक्तिवत् चैतन्यमुपजायते। तेषु विनष्टेषु सत्सु स्वयं विनश्यति।---चार्वाक। ( सर्वदर्शनसंग्रह )।