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गिरना, लपेटी हुई कमानी का खुलना, कोयले का दहकना, बारूद का भड़कना सब गति के ही नाना रूप हैं । द्रव्य और गतिशाक्ति इन्ही दो को लेकर अपनी सूक्ष्म परीक्षाओं द्वारा वैज्ञानिक समस्त व्यापारो के कारण आदि की व्याख्या करते है । जिस प्रकार द्रव्य एक अवस्था से दूसरी अवस्था मे---ठोस से द्रव, द्रव से वायव्य, वायव्य से द्रव, द्रव से ठोस अवस्था मे----लाया जा सकता है उसी प्रकार गतिशक्ति भी एक रूप से दूसरे रूप में लाई जा सकती है । गति ताप के रूप मे परिवर्तित हो सकती है, ताप विद्युत् के रूप में, विद्युत ताप और प्रकाश के रूप में । राँगे और ताँबे को जोड़ कर अगर एक कोना गरम करे और दूसरे को ठंडा रखे तो बिजली पैदा हो जायगी। चकमक के क्षेत्र में किसी धातु को घुमाने से भी बिजली उत्पन्न होती है। यदि बडे वेग से आते हुए पत्थर के गोले को हम दूसरे पत्थर से बीच ही में रोक ले तो पहले पत्थर की गति-शक्ति रुकने से क्या हुई ? क्या नष्ट हो गई ? नहीं, वह ताप के रूप में परिवर्तित हो गई । दो वस्तुओं की रगड़ से जो गरमी पैदा होती है उसका अनुभव हसे नित्य होता है । इस गरमी के पैदा होने का मतलब यही है कि रगड़ की जो गति है उसने ताप की रूप धारण कर लिया । कोई शक्ति क्रियमाण हो कर एक द्रव्यखंड से दूसरे खंड में जाते जाते अत में ताप के रूप में हो कर आकाश द्रव्य में लय को प्राप्त हो जाती है।

शक्ति या तो निहित वा अव्यक्त रूप से रहती है अथवा व्यक्त वा क्रियमाण रूप मे । दोनों छोर मिला कर पकड़े हुए