पृष्ठ:विश्व प्रपंच.pdf/११०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( १०३ )


( १ ) यह जगत् क्या है, अर्थात् इसकी मूल सत्ता किस प्रकार की है? ( २ ) जगत् के नाना व्यापार किस प्रकार होते हैं? उस गति का विधान कैसा है जिसके अनुसार नाना पदार्थ अपने वर्तमान रूप को प्राप्त हुए हैं। कहने की आवश्यकता नही कि विकाशसिद्धांत का संबंध असल मे दूसरे प्रश्न से है। उसी का उत्तर उसके निरूपण देते हैं। सत्ता की मीमांसा विकाश का विषय नही। पर दार्शनिक प्रवृत्ति रखनेवाले हैकल ऐसे विकाशवादी नाना व्यापारो को सत्ता के लक्षण मान उसके अनुमान मे भी प्रवृत्त होते हैं।

इस जगत् के अंतर्गत दो प्रकार के व्यापार देखने मे आते हैं---भौतिक और मानसिक। इन दोनो के उत्तरोत्तर क्रमविधान का वैज्ञानिक निरूपण विकाशवाद करता है। इन निरूपणो को दो दृष्टियो से हम देख सकते है--द्वैत दृष्टि से और अद्वैत दृष्टि से।

द्वैत पक्ष यह है कि भूत और आत्मा ( अंतकरण विशिष्ट आत्मा ) दो सर्वथा पृथक् सत्ताएँ हैं। भैतिक व्यापार और मानसिक व्यापार दोनो एक ही नहीं हैं। अद्वैत पक्ष दो प्रकार का है--( क ) आधिभौतिक और आध्यात्मिक। अधिभौतिक अद्वैतवाद केवल एक महाभूत की सत्ता मानता है। और आत्मा या मन को उसी का एक गुण या अभिव्यक्ति विशेष कहता है। इसके अनुसार आत्मा कोई अलग तत्त्व या सत्ता नहीं। हैकल ने स्पिनोज़ा के जिस तत्त्वाद्वैतवाद का प्रतिपादन किया है वह इससे विशेष भिन्न नहीं। हैकल के अनुसार भौतिक और मानसिक एक ही परमतत्त्व के दो