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पक्ष या रूप हैं। एक ही तत्त्व या सत्ता की अभिव्यक्ति दो रूपो मे होती है---द्रव्य या भूत के रूप में तथा गति शक्ति या आत्मा के रूप मे। अर्थात्, आत्मा एक प्रकार की गति या शक्ति का ही नाम है। जिस प्रकार पानी का बहना, हवा का चलना, बारूद को भड़कना आदि गतिशक्ति के रूप हैं उसी प्रकार बोध करना और सोचना विचारना भी। हैकल की अद्वैत सत्ता चेतन नही, उसके सिद्धांत में चेतना एक गुणपरिणाम है जो अनेक परिणामो के उपरांत उत्पन्न होता है और फिर नष्ट हो जाता है। यह वैज्ञानिक या आधिभैतिक अद्वैतवाद है।

(ख) आध्यात्मिक अद्वैतवाद केवल आत्मसत्ता ही मानता है। उसके अनुसार चैतन्य ही एक मात्र सत्ता है। भौतिक जगत् या उसके नाना रूपों को वह आत्मा के विविध भाव मात्र कहता है। आधुनिक दर्शन मे इसी मत की प्रधानता है। इसे योरप का वेदांत कह सकते हैं। इसके प्रतिष्ठाता जर्मनी मे हुए हैं।

प्रकृति मे जितने व्यापार या परिणाम हम देखते हैं द्वैत या अद्वैत दृष्टि के अनुसार उनके दो प्रकार के कारण हम सोच सकते हैं--निमित्त कारण और समवायिकारण। द्वैत पक्ष के अनुसार जितने व्यापार होते हैं सब किसी निमित्त या उद्देश्य से होते हैं और उद्देश्य को धारण करनेवाला कारण भूतों से परे है। भूतातीत नियंता या विश्वविधायक आत्मा माननेवाले समस्त भौतिक क्रियाओ को उद्देश्य द्वारा प्रेरित मानते है। ये समवावि कारणो को निमित्त कारण के अधीन मानते हैं।