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लोग प्रत्येक भूतखंड मे किसी न किसी रूप का संवेदन मानते है और कहते हैं कि अणुओं और परमाणुओ के परस्पर आकषर्ण और अपसारण को संवेदन का मूलरूप समझना चाहिए। हैकल के सिद्धांत में इन दोनों का मेल है।

विकाशवाद को दार्शनिक रूप हर्बर्ट स्पेंसर द्वारा ही प्राप्त हुआ है। उसी ने उसके नियमो को विश्वव्यापक रूप दिया है। उसने विकाश की परिभाषा इस प्रकार की है—"एकरूपता या निर्विशेषता से अनेकरूपता या सविशेषता की ओर, अव्यक्त से व्यक्त की ओर गति का नाम विकाश है" । इस गति का कारण द्रव्य मे समवेत है। भौतिक शक्ति के व्यापक नियमो द्वारा ही इसका विधान होता है। उससे परे किसी और शक्ति की प्रेरणा अपेक्षित नही। निर्विशेषता या साम्यावस्था क्षणिक होती है और एक कारण से अनेक कार्य होते है, अत: विकाश अनिवार्यं है। गतिशक्ति के संयोजक और वियोजक जो दो रूप हैं उन्ही के द्वंद्व का परिणाम चला चलता है। इस परिणामपरंपरा की प्रवृत्ति दोनो शक्तियो के साम्य की ओर रहती है अतः विकाश या विकृति के नाना रूप कभी न कभी प्रकृतिस्थ हो कर नष्ट होगे। प्रकृति से फिर विकृति होगी। यह क्रम बराबर चला चलता है।

इन नियमो का निरूपण करके स्पेसर ने इन्हें जड़ जगत् की उत्पत्ति और सजीव सृष्टि के विकाश पर घटाया है। मन या अंत करण के विकाश को भी इन्हीं नियमों के अंतर्गत करके उसने समाज के विकाश की मीमांसा की है। वाह्य विषयों के साथ अंतव्यपारों के सामंजस्य का ही नाम जीवन