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निश्चय किसी प्रत्यक्षानुभव द्वारा प्राप्त नही। कालिदास को कुछ लोग ई० पू० का मानते है और कुछ लोग ४ थी शताब्दी | का। यदि कोई कहे कि दोनों संभव है तो वह विक्षिप्त समझा जायगा।

( ४ ) अंकगणित के निरूपण भी इसी प्रकार अपरिहार्य होते है। यह शास्त्र कालसंबंधी है क्योकि यह गिनने की संक्षिप्त विधि मात्र है। गिनना एकाई का कई बार निर्धारण है जिसके लिये हम भिन्न भिन्न संकेत रख लेते हैं। 'कई बार' यह कालपरंपरा का भाव है अतः अंकगणित कालसंबधी शास्त्र है। उसके अपरिहार्य निरूपण काल का बाह्यनिरपेक्षत्व सिद्ध करते है।

( ५ ) प्रत्येक प्रत्यक्षानुभव कुछ काल तक मन के प्रभावित होने पर होता है। यह काल (चाहे कितना ही अल्प हो ) कई सूक्ष्म खंडो के योग से बना होता है जिनके बीच कई सूक्ष्म अनुभव होते है। आत्मा के ये सूक्ष्म अनुभव मुझसे संबंध रखते है पर एक दूसरे से नही। वह सुत्र जिसमे वे पिरोए जाकर एक समवाय ज्ञान उत्पन्न करते है काल है जो अनुभवो द्वारा प्राप्त नही होता, चित्त द्वारा प्रयुक्त किया जाता है।

( ६ ) काल अनादि और अनत है । हमे यह पूर्ण निश्चय है कि काल बराबर था और बराबर रहेगा। हमारा यह निश्चय किसी अनुभव द्वारा प्राप्त नही, यह चित् से ही आता है।