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वाह्यार्थवाद।

वाह्यार्थवादी सर्वसाधारण की धारणा का समर्थन करते हुए भूत और आत्मा दो अलग सत्ताएँ मानते हैं। उन्हे दोनो ओर के अद्वैतवादियों के खंडन में प्रवृत्त होना पड़ता है। अद्वैतं आत्मवाद की प्रचंड युक्तियो के निराकरण मे भी वे प्रवृत्त होते हैं और भूताद्वतियों की त्रुटियों का भी दिग्दर्शन कराते हैं। जर्मनी में ही ड्यूरिंग (Duhring) आदि कई वाह्यार्थवादियो ने कांट के निरूपण के विरुद्ध प्रयास किया है। वाह्यार्थवादी भी दो प्रकार के हैं। कुछ तो भौतिक जगत् को प्रत्यक्ष नही मानते, अनुमान मानते हैं। वे इस युक्ति को मानते हैं कि मन का जो ज्ञान होता है वह अपने ही स्वरूपो या संस्कारों का, पर इन संस्कारों द्वारा इस बात का पूरा अनुमान होता है कि भौतिक जगत् है। शुद्ध बाह्यार्थवादी कहते हैं कि हमे भौतिक जगत् का प्रत्यक्ष ज्ञान होता है, मानसिक संस्कार मध्यस्थ नही। इंग्लैंड में रीड, स्टिवर्ट, और हेमिल्टन शुद्ध बाह्यार्थवाद के अनुयायी हो गए है। मार्टिना, माइवर्ट और मेकाश आधुनिक अनुयायिओं में हैं। इंग्लैंड की स्वाभाविक प्रवृत्ति इसी मत की ओर अधिक है जिसमे न्याय और वैशेषिक के समान ईश्वर, आत्मा और भूत के लिये उसी प्रकार अलग अलग जगह है जिस प्रकार सर्व साधारण के मन में।

इस मत क समर्थक भाववादियो की इस मूल प्रतिज्ञा को असिद्ध कहते हैं कि मन कि जो संवेदन या ज्ञान होता है वह अपने ही संवेदन का न कि वस्तु का। वे कहते हैं कि जिसका ज्ञान होता है वह भौतिक पदार्थ से उत्पन्न भौतिक प्रभाव है,