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भी योग है। परलोकवादी तो अब एक कोने मे बैठा दूर से आसरा लगाए देख रहा है कि इस झगड़े से कभी न कभी उसके काम की बात निकल आवेगी। वह बैठा बैठा सोचता है कि बहुत सी बाते जिन्हे लोगो ने उतावली करके अधूरे प्रमाण पर ही झूठ ठहराया थी वे किसी न किसी रूप मे आगे चल कर ठीक प्रमाणित होगी। इस प्रकार धर्मोपदेशको (पादरियो) का पुराना द्वेष तो इधर शांत है।

भौतिक विद्या मे शक्ति पर विवाद चल रहा है। रसायन में अणुओ की बनावट का झगड़ा है। प्राणिविज्ञान मे वशपरंपरा के नियमो की छानबीन है। शिक्षापद्धति मे बच्चों को अधिक स्वतंत्रता देने के लाभ बताए जा रहे है। राजनीति, अर्थनीति, और समाजनीति मे तो दुनियाँ की कौन ऐसी बात है जिस पर वाद न हो----केवल 'धन धरती' पर ही नही, अदन के पुराने बाग से ले कर स्त्रीपुरुष के परस्पर संबंध तक पर विवाद छिड़ा हुआ है। इसी प्रकार गणित और विज्ञान की शाखाओं मे आज कल का संशयवाद अखंडत्व के संबंध मे है।

"इन सब खडवादो से बढ़ कर गूढ़ और तत्वमूलक सब प्रकार के विज्ञान के आधारो की गहरी परीक्षा है जो आजकल हो रही है। एक प्रकार का दार्शनिक संशयवाद भी बढ़ती पर है जिससे बुद्धि के शुद्ध निरूपण क्रम पर भी अविश्वास किया जा रहा है और विज्ञान की पहुँच भी परिमित बताई जा रही है।

"वैज्ञानिक भी पुराने सिद्धांतो के खंडन में लगे हैं। एक