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"पर लक्ष्यो को हटाने में धैर्य से काम लेना चाहिए। इन लक्ष्यो मे सब से प्रधान अखंडत्व है। मै शून्य आकाश मे किसी सूक्म से सूक्ष्म भौतिक शक्ति की क्रिया का अनुमान नहीं कर सकता। उसके लिये एक अखंड मध्यस्थ अवश्य चाहिए। ईथर की किसी प्रकार की परीक्षा अत्यंत दुःसाध्य है। उसके विषय मे हम केवल इतना ही जानते हैं कि किस वेग से उसके द्वारा शक्तिप्रवाह गमन करते है। वह हमारी पकड़ मे नहीं आता। यदि हम उसके बीच से कोई द्रव्य तेजी से ले जायँ तो भी कोई पदार्थघटित सबंध नही मिलता। प्रकाश को लेकर परीक्षा करते हैं तो भी सफलता नही होती। जब तक कि प्रकाश की गति हमारे सापेक्ष है तभी तक हम उसका अनुभव कर सकते हैं। पर जहाँ एक द्रव्य की गति दुसरे के सापेक्ष नही है वहाँ उसकी गति को कुछ भी पता नही चलता। जैसे यदि दो मनुष्य साथ साथ समान गति से गमन करते है तो एक को दूसरे की गति नहीं मालूम हो सकती इसीसे कुछ लोगो को यह विचार हो रहा है कि किसी गति को ईथर के सापेक्ष बताना बात ही बात है। इस का पता कभी लग हीं नही सकता।

"हम लोगो का यह युग अत्यंत सूक्ष्म कल्पनाओ का है। बीसवी शताब्दी का बड़ा भारी आविष्कार द्रव्य का विद्युत् सिद्धांत ( अर्थात् द्रव्य विद्युत् का ही एक रूप है ) है। परिमाण और आकार जो वेग की क्रियाएँ निश्चित हुए हैं वह इसी सिद्धांत के बल से। इसकी सहायता से हम उन परीक्षाओं को करते हैं जिससे ईथर और द्रव्य के संबंध का कुछ