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कुछ आभास मिलता है। इससे किसी दिन यह भी संभव है कि हम विद्युदणुओं की आकृति आदि के परिवर्तनो का भी पता लगा लें क्योंकि यद्यपि वे अत्यंत सूक्ष्म हैं पर उनकी गति प्रकाश की गति के लगभग है। फिर कौन जाने इसी प्रकार ईथर के गुणो तक हमारी पहुँच हो जाय और अखंडत्व को हम अच्छी तरह समझ सकें।"

कहने की आवश्यकता नहीं कि अखंडत्व का निर्धारण नाना विशेषो के भीतर एक निर्विशेष का निर्धारण है जिसके द्वारा सत्ता का आभास मिल सकता है। आधुनिक वैज्ञानिक स्थिति की संक्षिप्त समीक्षा कर लॉज ने अंत मे प्राणशक्ति, आत्मा, अमरत्व, परलोक आदि के संबंध में अपने विचार प्रकट किए हैं--

"जो बात निश्चित जान पड़ती है वह यह है कि भूत के बिना प्राणशक्ति की कोई भौतिक अभिव्यक्ति नहीं हो सकती। इसीसे कुछ लोगो का यह कहना या इस कहने को पसंद करना स्वाभाविक ही है कि 'हम भूत मे प्रत्येक प्रकार की प्राणशक्ति की संभावना और सामर्थ्य देखते है'। ठीक है, पर प्रत्येक प्रकार की प्राणशक्ति की नहीं, प्रत्येक प्रकार की प्राणशक्ति की भौतिक अभिव्यक्ति की। क्योकि प्राणशक्ति हमे भूत द्वारा व्यक्त होने के अतिरिक्त और किस प्रकार व्यक्त हो सकती है? यह भी कहा जाता है कि 'प्राणी मे हम रसायन और भूतविज्ञान के नियमों के अतिरिक्त और कुछ पाते ही नही'। बहुत ठीक, यह भी स्वाभाविक ही है क्योकि लोग प्राणशक्ति के भौतिक या रासायनिक रूप या व्यक्तता को तो