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संकीर्ण पांडित्य का दंभ दिखाते हैं और अपने मनुष्यजन्म के अधिकार की पूर्णता और समृद्धि खोते है।

"विकाश परम सत्य है, बड़े महत्त्व का सिद्धांत है। सामाजिक उन्नति के लिए हमारे प्रयत्न इस लिए उचित हैं कि हम समष्टि के एक अंग हैं, अंग भी ऐसे जो चेतन हो गया है। अतः समष्टि मे उदेश्य-विधान का अभाव नहीं हो सकता क्योकि हम उसके एक अंग हो कर अपने आप में उसको अनुभव करते है।•••• शरीरवियोग के उपरांत भी आत्मा बनी रहती है। यदि न्याय से पूछा जाय तो मैं केवल इतना ही नहीं कहता कि जो बाते अभी परोक्षवाद् के अंतर्गत समझी जाती हैं वे वैज्ञानिक प्रणाली द्वारा जाँची और निरूपित की जा सकती हैं बल्कि यहाँ तक कहता हूँ कि जहाँ तक परीक्षा हुई है उससे हमे यही निश्चय हुआ है कि स्मृति और अतःकरणवृत्तियां भूतसंबंध ही तक परिमित नहीं हैं, संस्कार रूप मे वे बराबर बनी रहती हैं। परीक्षा द्वारा मुझे यह प्रतीत होता है कि यद्यपि शुद्ध भूतनिर्लिप्त चैतन्य का साक्षात् ज्ञान हसे नही हो सकता पर उसका आभास भौतिक जगत् मे दिखाई देता है। अत वह कुछ घुमाव फिराव के साथ हमारी वैज्ञानिक परीक्षा के अंतर्गत आ सकता है। कुछ सच्चे और विश्वस्त अन्वेषक आशापूर्वक ज्ञान के एक नए क्षेत्र का आभास दे रहे है।

यह हम कभी नहीं कह सकते कि इस लोक मे सत्य का प्रादुर्भाव केवल दो एक शताब्दियो से ही होने लगी। वैज्ञानिक काल के पूर्व की प्रतिभा की पहुँच भी बड़े महत्व की

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