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यदि हम करे तो वे अगोचर हो जायँगे। ये ही अगोचर दुकड़े परमाणु होगे और इनके और टुकड़े न हो सकेगे। वैशेपिक के अनुसार परमाणु नित्य और अक्षर है। इन्ही की योजना से सब पदार्थ बनते है और सृष्टि होती है। आकाश को छोड़ जितने प्रकार के भूत होते है उतने ही प्रकार के परमाणु होत है---यथा, पृथ्वीपरमाणु, जलपरमाणु, तेजपरमाणु और वायुपरमाणु। परमाणु रूप मे, आकाश के समान, शेष चारो भूत भी नित्य हैं। आधुनिक विज्ञान ने पृथ्वी, जल और वायु को द्रव्य का अवस्थाभेद सिद्ध किया और तेज को गतिशक्ति का एक रूप मात्र। अतः परमाणु भी चार प्रकार के नहीं, ७८ प्रकार के ठहराए गए। कुछ लोग नई बातो के साथ पुरानी बातो का अविरोध सिद्ध करने के लिये भूतो को ठोस, द्रव, वायव्य और अतिवायव्य अवस्थाओं के सूचक मात्र कहने लगे हैं। पर परमाणुओं के वर्गीकरण की ओर ध्यान देने से यह स्पष्ट हो सकता है कि वैशेपिक का अभिप्राय अवस्थाभेद नहीं है गुणभेद के अनुसार द्रव्यभेद ही हैं- जैसे, जल मे सासिद्धिक या स्वाभाविक द्रवत्त्व का गुण है अत वह एक मूल द्रव्य है। पर आधुनिक रसायन शास्त्र में जल को किस प्रकार यौगिक सिद्ध किया है यह ऊपर कहा जा चुका है। मूलभूतो और परमाणुओ का संबध वैशेषिक ने उसी रीति से निर्धारित किया है जिस रीति से आधुनिक रसायनशास्त्र ने किया है। यह हमारे लिये कम गौरव की बात नहीं है। ब्योरा ठीक न मिलने के कारण इस पर परदा डालने की जरूरत नही।