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५०वर्षों के बीच विज्ञान ने बड़ी विलक्षण उन्नति की है, विज्ञान के प्रत्येक विभाग मे बहुत सी नई नई बाते की जानकारी प्राप्त हुई है। खुर्दबीन के द्वारा सूक्ष्म से सूक्ष्म वस्तुओ का और दूरबीन के द्वारा बड़ी से बड़ी वस्तुओ का जो परिज्ञान प्राप्त हुआ है वह आज से सौ वर्ष पहले असंभव समझा जाता था। सूक्ष्मदर्शकयंत्र के प्रयोग और प्राणिविज्ञान के गूढ अन्वेषणो द्वारा क्षुद्र कीटाणुओ के अनंत भेदो का ही पता नही चला बल्कि यह भी जाना गया कि सूक्ष्म घटक * ही मे सेद्रिय या सजीव सृष्टि का वह मूल तत्त्व है जिसकी सामाजिक योजना से सारे प्राणियो का-क्या चर क्या अचर, क्या उद्विज क्या मनुष्य-- शरीर बना है। शरीर-विज्ञान के द्वारा अब यह भली भांति सिद्ध हो गया है कि एक ही घटक से अर्थात् सूक्ष्म गर्भाड से बड़े से बड़े अनेकघटक जीवो का विकाश होता है। घटक सिद्धांत के द्वारा हम अब जीवो के उन समस्त आधिभौतिक, रासायनिक और यहाँ तक कि मानसिक व्यापारो का सच्चा रहस्य जान सकते है जिनके लिये पहले एक 'अलौकिक शक्ति' या अमर आत्मा की कल्पना करनी पडती थी। इस सिद्धांत के द्वारा रोगो के ठीक निदान मे भी चिकित्सको को बड़ी सहायता मिली है।

इसी प्रकार निरिद्रिय(जड़) भौतिक सृष्टि-संबंधी आविष्कार भी कम ध्यान देने योग्य नहीं है। दृष्टिविज्ञान, श्रोत्रविज्ञान, चुंबकाकर्षण निर्माणविज्ञान ( जिसके द्वारा अनेक प्रकार की कलें आदि बनती है ), गतिशक्तिविज्ञान इत्यादि भौतिक


देभूमिका।