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वैशषिक में दो परमाणुओ के योग को द्वथणुक कहत हैं। आगे चल कर ये ही द्वथणुक अधिक संख्या मे मिलते जाते है जिससे नाना प्रकार के पदार्थ बनते है---जैसे, तीन द्वथणुको से त्रसरेणु, चार द्वषणुको से चतुरणुक इत्यादि। कारण-गुणपूर्वक ही कार्य के गुण होते हैं अत जिस गुण के परमाणु हागे उसी गुण के उनस बने पदार्थ होंगे। पदार्थों में जो नानी भेद दिखाई पड़ते हैं वे सन्निवेश भेद से होत हैं। तेज के सबध से वस्तुओं के गुण में बहुत कुछ फेरफार हो जाता है-जैसे, कच्चा घड़ा पकने पर लाल हो जाता है।

परमाणु का प्रत्यक्ष नहीं होता। परमाणु की बात छोड़ दीजिए, अणुओ की सूक्ष्मता भी कल्पनातीत है। तीव्र से तीव्र सूक्ष्मदर्शक यत्र उनका दर्शन नहीं करा सकते। उनका निरूपण उनके कार्यों द्वारा गणित आदि के सहारे से ही किया जाता है। जल का ही अणु लीजिए जो इच के १०,००,०० वें भाग के वरावर होता है। अब इस अणु की योजना करने वाले परमाणुओ की सूक्ष्मता का इसी से अंदाजा कर लीजिए। विद्युदणु तो उनसे भी सूक्ष्म है। हिसाब लगाया गया है कि हाइड्रोजन के एक परमाणु मे १६०००, और रेडियम के एक परमाणु में १६०००० विद्युदणु होते हैं। इन विद्युदणुओ के बीच का अतर उनकी सूक्ष्मता के हिसाब से बहुत अधिक होता है--उतना ही होता है जितना सौरजगत् के ग्रहों के बीच होता है। * अपने परमाणु-जगत् के अतरिक्ष में ये परस्पर शक्ति


*परमाणुओ के बीच अंतर को पारणा ने रान के कारण