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(३) जीवन का मूल कारण।

(४) सृष्टि का इस कौशल के साथ क्रमविधान।

(५) संवेदना और चेतना का मूल कारण।

(६) विचार और उससे संबद्ध वाणी की शक्ति।

(७) इच्छा का स्वातंत्र्य।

इनमे से पहली दूसरी और पॉचवी तो उस वक्ता की समझ मे नितांत अज्ञेय और भूतादि से परे है। तीसरी, चौथी और छठीं का समाधान हो सकता है पर अत्यंत कठिन है। सातवीं के विषय मे वह अपना कोई निश्चय नही बतला सका।

मेरी सम्मति मे जो तीन समस्याएँ भूतो से परे कही गई है उनका समाधान हमारे परमतत्त्व-विषयक विवेचना से हो जाता है (देखो, प्रकरण १२ वाँ ) और जो तीन अत्यंत कठिन बतलाई गई है उनका ठीक ठीक उत्तर आधुनिक विकाशवाद से मिल जाता है। अब रही सातवी, इच्छा की स्वतंत्रता। उसके विषय मे विचार करना ही व्यर्थ है क्योकि वह शुद्ध भ्रम और मिथ्या प्रवाद मात्र है।

इन समस्याओ के समाधान के लिये हमने उसी प्रणाली का अनुसरण किया है जिससे और सब वैज्ञानिक अन्वेषण किए जाते है---प्रथम तो प्रत्यक्षानुभव, फिर अनुमान। वैज्ञानिक अनुभव हमे साक्षात्कार और परीक्षा द्वारा प्राप्त होता है जिसने पहले तो इंद्रियों के व्यापार से सहायता ली जाती है फिर मस्तिष्क मे स्थित अंतःकरण के व्यापार से। पहले के आधारभूत सूक्ष्म करण इंद्रियघटक है और दूसरे के मस्तिष्क ग्रथिघटक। बाह्य जगत् के जो अनुभव हम इन करणो द्वारा