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प्राप्त करते है उनसे मस्तिष्क के दूसरे भाग मे भाव बनते है जो अनुबंध द्वारा मिल कर श्रृखला की योजना करते है। इस विचारश्रृंखला की योजना दो प्रकार से होती है-व्याप्तिग्रह ( यह अनुमान कि जो बात किसी वर्ग की कुछ वस्तुओ के विषय मे ठीक है वही उसके अंतर्गत सब वस्तुओ के विषय मे भी ठीक है ) और व्यष्टिग्रह ( यह अनुमान कि जो बात किसी समूह के विपय मे ठीक है वही उसके अंतर्गत किसी एक वस्तु के विषय मे भी ठीक है ) के रूप मे। चेतना, विचार और तर्क आदि नव मस्तिष्क मे स्थित ग्रंथिघटको के व्यापार है। इन सब व्यापारो का अंतर्भाव 'बुद्धि' शब्द से हो जाता है।

बुद्धि ही के द्वारा हम संसार का यथार्थ ज्ञान प्राप्त कर सकते है और उसकी समस्याओ को समझ सकते है। बुद्धि मनुष्य की बड़ी भारी संपत्ति है, मनुष्य और पशु मे बुद्धि ही का भेद है। पर मानवबुद्धि इस पद को शिक्षा और सस्कार की उन्नति तथा ज्ञान की वृद्धि द्वारा पहुँची है। इस पर भी कुछ लोगो का ख्याल है कि इस बुद्धि के अतिरिक्त ज्ञान के दो साधन और भी है—मनोद्गार और ईश्वराभास (इलहाम) । जहाँ तक शीघ्र हो सके हमें इस भारी भ्रम को दूर कर देना चाहिए। मनोद्गार अत करण की वह क्रिया है जिसके अंतर्गत इच्छा, द्वेष, प्रवृत्ति, श्रद्धा, घृणा आदि है। मनोद्गार हमारे भिन्न भिन्न अवयवो के व्यापारो ( जैसे पेट मे लगी भूख ) तथा इंद्रियो की वासनाओ ( जैसे प्रसंग को ) से प्रेरित हो सकते है। उनसे भला सत्य के निर्णय मे क्या सहायता मिल