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सकती है? हाँ बाधा अलबत्त पहुँच सकती है। यही बात ईश्वराभास ( इलहाम ) वा 'ईश्वर प्रेरित ज्ञान' के विषय मे भी क्रही जा सकती है जो धोखे के सिवाय और कुछ नहींचाहे धोखा जान बूझ कर दिया गया हो चाहे लोगो ने यो ही खाया हो।

जगन् संबंधी प्रश्नो के हल करने के लिये अनुभव और चितन ये दो ही मार्ग है। हर्ष का विषय है कि ये दोनो अब समान रूप से स्वीकृत हो चले है। दार्शनिक ( चितन करनेवाले ) अब समझने लगे है कि कोरे चितन से---जैसा कि प्लेटो और हैगल ने * अपने भावात्मक दर्शन मे किया है सत्य का ज्ञान नही हो सकता। इसी प्रकार वैज्ञानिक भी अब यह जान गए है कि केवल प्रत्यक्षानुभव-जिसके आधार पर बेकन और मिल ने अपना प्रत्यक्षवाद स्थापित किया था---पूर्ण तत्त्वज्ञान के लिये काफी नहीं है। सत्यज्ञान की प्राप्ति इंद्रिय और अंतःकरण दोनो की क्रियाओ के योग से हो सकती है। पर अभी कुछ ऐसे दार्शनिक भी है जो योही बैठे बैठे अपने भावमय जगत् की रचना क्रिया करते है और अनुभवात्मक विज्ञान का इस लिये तिरस्कार करते है कि उन्हे संसार का यथार्थ बोध नहीं होता। इसी प्रकार कुछ वैज्ञानिक ऐसे भी है जो कहते है कि विज्ञान का परम लक्ष्य भिन्न भिन्न व्यापारो का अन्वेषण मात्र है, दर्शन का जमाना अब


  • भारत के दार्शनिको ने भी इसी प्रणाली का अनुसरण किया था।