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गया।" इस प्रकार के एकांगदर्शी विचार परम भ्रमात्मक हैं। प्रत्यक्षानुभव और चितन ज्ञानप्राप्ति की ये दोनो प्रणालियाँ अन्योन्याश्रित हैं---एक दूसरे की सहायक है। विज्ञान के सब से पहुँचे हुए आविष्कार---जैसे घटक सिद्धांत, ताप का गत्यात्मक सिद्धांत, विकाशवाद, परमतत्त्व की नियमव्यवस्था--दार्शनिक विचार के फल हैं। पर वे कोरे अनुमान के फल नही, अत्यत विस्तृत, प्रत्यक्षाश्रित अनुमान के फुल है। जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है अब स्थिति बहुत कुछ बदल गई है। अब दार्शनिक और वैज्ञानिक दोनो दल के लोग एक दूसरे की सहायता करते हुए दो भिन्न भिन्न मार्गों से एक ही प्रधान लक्ष्य की ओर जा रहे है।

आधुनिक विज्ञान की दृष्टि से दार्शनिको के परस्पर दो विरुद्ध दल दिखाई पड़ते है। एक तो द्वैतवादियो का, दूसरा अद्वैतवादियों का। द्वैतवाद ब्रह्मांड को दो भिन्न भिन्न तत्वो मे विभक्त करता है—एक भौतिक जगत् और दूसरा उसका बनाने, धारण करने और चलानेवाला ईश्वर जो समस्त भूतो से परे है। अद्वैतवाद ब्रह्माड मे केवल एक परमतत्त्व मानता है जो ईश्वर और प्रकृति दोनो है। वह शरीर और आत्मा ( या द्रव्य और शक्ति ) को परस्पर अभिन्न या अनवच्छेद्य मानता है। द्वैतवाद के भूतातीत ईश्वर को माननेवाले दैववादी और जगत और ईश्वर को ओतप्रोत भाव से माननेवाले ब्रह्मवादी या सर्वात्मवादी कहलाते है।

उपर्युक्त अद्वैतवाद और भूतवाद को एक मान कर प्रायः लोग गड़बड करते हैं। इस गड़बड़ से अनेक प्रकार के भ्रम