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उत्पन्न हो सकते हैं। अत यहाँ पर दो बाते संक्षेप में बतला देना आवश्यक है---

(१) शुद्ध अद्वैतवाद न तो वह भूतवाद है जो आत्मा का अस्तित्व अस्वीकार करता और जगन् को जड़ परमाणुओ का ढेर बतलाता है, और न वह अध्यात्मवाद है जो भूतों का अस्तित्व नही मानता और जगत् को अभौतिक शक्तियों के विधान का समाहार मात्र बतलाता है।

(२) हमारा सिद्धांत तो यह है कि न तो द्रव्य की स्थिति और क्रिया आत्मा ( या शक्ति) के बिना हो सकती है और न आत्मा की द्रव्य के बिना। द्रव्य (या अनंतव्यापी तत्व) और आत्मा ( शक्ति या संविद् चेतन तत्त्व ) दोनों इस विभु परम तत्त्व के दो मूल रूप या गुण है।

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