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दूसरा प्रकरण।

हमारा शरीर।

जीवो के समस्त व्यापारो और धर्मों के अन्वेषण के लिए हमे पहले शरीर को लेना चाहिए जिसमे जीवनसंबंधिनी भिन्न भिन्न क्रियाएँ देखी जाती हैं। शरीर के केवल बाहरी भागो की परीक्षा से हमारा काम नही चल सकता। हमे अपनी दृष्टि भीतर धँसा कर शरीर-रचना के साधारण विधानो तथा सूक्ष्म व्योरो की जाँच करनी चाहिए। जो विद्या इस प्रकार का मूल अन्वेषण करती हैं उसे अगविच्छेदशास्त्र * कहते है।

मनुष्य के शरीर की जाँच का काम पहले पहल चिकित्सा मे पडा, अत तीन चार हज़ार वर्ष पहले के प्राचीन चिकित्सको को मनुष्य के शरीर के विषय मे कुछ न कुछ जानकारी हो गई थी। पर ये प्राचीन शरीरविज्ञानी अपना ज्ञान मनुष्य के शरीर की चीरफाड द्वारा नहीं प्राप्त करते थे, क्योकि तत्कालीन व्यवस्था के अनुसार मनुष्य का शरीर चीरना फाड़ना बडा भारी अपराध गिना जाता था। बंदर आदि मनुष्य से मिलते जुलते जीवो के शरीर की चीरफाड़ द्वारा ही वे शरीर-सबधिनी बात का पता लगाते थे। सन् १५४३ मे विसेलियस


  • वह विद्या जिससे गरीर के भिन्न भिन्न भीतरी अवयवो के स्थान और उनकी बनावट का बोध होती है। इसमें चीरफाड कर अगों की परीक्षा की जाती है इससे इसे अगविच्छेदशास्त्र कहते हैं।