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ने मनुष्य-शरीररचना पर एक बड़ी पुस्तक लिखी और शरीर विज्ञान की नींव डाली। स्पेन मे उसपर जादूगर होने का अपराध लगाया गया और उसे प्राणदंण की आज्ञा मिली। अपना प्राण बचाने के लिए वह ईसा की जन्मभूमि यरूशलम तीर्थ करने चला गया, वहाँ से वह फिर न लौटा।

उन्नीसवीं शताब्दी मे यह विशेषता हुई कि शरीर की बनावट की छानबीन के लिए दो प्रकार की परीक्षाएँ स्थापित हुई। तारतम्यिक अराविच्छेद-विज्ञान और शरीराणु विज्ञान। तारतम्यिक अंगविच्छेद-विज्ञान की स्थापना सन् १८०३ मे हुई जब कि फरासीसी जंतुविद् क्यूवियर ने अपना वृहद् ग्रंथ प्रकाशित करके पहले पहल मनुष्य और पशु-शरीर-संबधी कुछ सामान्य नियम स्थिर किए। उसने समस्त जीवो को चार प्रधान भागो में विभक्त किया---मेरुदंड या रीढ़वाले जीव, कीटवर्ग ( मकड़ी, केकडे, विच्छू, गुबरैले आदि ), शुक्तिवर्ग ( घोघे अदि ) और उद्भिदाकार कृमि। यह बड़ा भारी काम हुआ क्योकि इससे मनुष्य रीढ़वाले जीव की कोटि मे रक्खा गया। इसके उपरांत अनेक शरीरावज्ञानियो ने इस विद्या मे बहुत उन्नति की और अनेक नई नई बात का पता


  • भिन्न भिन्न जंतुओ के अगों को चीरफाड कर उनकी परीक्षा और उनका परस्पर मिलान।
  • -बहुत से ऐसे जीव होते हैं जो देखने मे पौधों की डाल पत्तियो के रूप के होते हैं। मूँगा इसी प्रकार का कृमि है जो समुद्र मे पाया जाता है।