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अर्थात् तरुणास्थियो और हड्डियों का पंजर होता है। इस पंजर मे मेरुदंड और कपाल प्रधान हैं। यद्यपि कपाल की उन्नत रचना मे छोटे से बड़े जीवों मे उत्तरोत्तर कुछ भेद दिखाई पड़ता है पर ढॉचा एक ही सा रहता है। समस्त रीढ़वाले प्राणियो मे 'अंत करण' अर्थात् संवेदलवाहक सूत्रजाल का केद्रस्वरूप मस्तिष्क इस मेरुदंड के छोर पर होता है। यद्यपि उन्नति की श्रेणी के अनुसार भिन्न भिन्न जीवो के मस्तिष्क मे बहुत कुछ विभिन्नताएँ दिखाई पड़ती है पर सामान्य लक्षण सब मे वही रहता है।

इसी प्रकार यदि हम अपने शरीर के और अवयवो का दूसरे रीढवाले जीवो क उन्हीं अवयवो से मिलान करे तो भी यही बात देखी जायगी। पितृपरंपरा के कारण सब के शरीर का मूल ढाँचा और उसके अवयवो के विभाग समान पाए जाते है, यद्यपि स्थितिभेद के अनुसार भिन्नभिन्नजन्तुओ के विशेष विशेष अगो की बड़ाई छोटाई तथा बनावट मे फर्क देखा जाता है। सब मे रक्त दो प्रधान नलो से होकर बहता है जिनमे से एक अँतड़ियो के ऊपर ऊपर जाता है और दूसरा नाचे नीचे। यही दूसरा नल जिस स्थान पर चौड़ा हो जाता है वही हृदय है। हृदय रीढ़वाले जीवो मे पेट की ओर होता है और कीटपतंग आदि मे पीठ की ओर। इसी प्रकार और और अगो की बनावट भी सब रीढ़वाले जीवो की एक सी होती है। अस्तु, मनुष्य एक रीढ़वाला जीव है।

प्राचीन लोग मनुष्य और पक्षियो के अतिरिक्त तिर्यक पशुओं ( गाय, कुत्ते आदि) को चतुष्पद कहते थे। क्यूवियर ने पहले पहल यह स्थिर किया कि द्विपाद मनुष्य और पक्षी