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और जरायुज। ये तीनों सृष्टि के भिन्न भिन्न युगो मे क्रमश उत्पन्न हुए है। मनुष्य जरायुज जीवो के अंतर्गत है क्योकि उसमे वे सब विशेषताएं है जो जरायुजो मे होती है। पहली वस्तु तो वह है जिसे जरायु कहते है और जिसके कारण जरायुज नाम पड़ा है। इसके द्वारा गर्भ के भीतर शिशु का बहुत दिनो तक पोषण होता है। यह गर्भ को आवृत करनेवाली झिल्ली से नल के रूप मे निकल कर माता के गर्भाशय की दीवार से संयुक्त रहता है। इसकी बनावट इस प्रकार की होती है कि माता के रक्त का पोषक द्रव्य शिशु के रक्त मे जाकर मिलता रहता है। गर्भपोषण


के पहले ही उत्पन्न हो जाते है और मादा उन्हे बहुत दिनो तक पेट के पास बनी थैली मे लिए फिरती है। कगारू नाम का जतु इसी वर्ग की है।

  • जरायु के द्वारा ही भ्रूण माता के गर्भाशय से सयुक्त रहता है। यह गोल चक्र या तश्तरी के आकार का और स्पज की तरह छिद्रमय होता है। मुख की ओर तो यह माता के गर्भाशय की दीवार से जुड़ा रहता है, पृष्ठ की ओर इसमे से एक लबा नाल निकल कर भ्रूण की नाभि तक गया रहता है। जरायुचक्र में बहुत से सूक्ष्म घट या उभरे हुए छिद्र रहते है जो र्गभाशय की दीवार के छिद्रों मे घुसे होते है। इसी के द्वारा भ्रूण के शरीर मे रक्त सचार, पोषक द्रव्यो का समावेश और श्वासविधान होता है। जरायु या उत्वनाल केवल पिडजो अर्थात् सजीव डिंभ प्रसव करनेवाले जीवों में ही होता है, अडजो आदि मे नहीं।