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की इस विलक्षण युक्ति के बल से शिशु को गर्भ के भीतर बहुत दिनो तक रह कर वृद्धि प्राप्त करने का अवसर मिलता है। यह बात बिना जरायु के गर्भ मे नही पाई जाती। इसके अतिरिक्त मस्तिष्क की उन्नत रचना आदि के कारण भी जरायुज जीव अपने पूर्वज अजरायुज जीवों की अपेक्षा बढे चढ़े होते हैं। अस्तु मनुष्य एक जरायुज जीव है।

जरायुज जीव भी अनेक शाखाओ मे विभक्त किए गए है जिनसे से चार प्रधान हैं---छेद्ददत ( कुतरनवाले ), खुरपाद, सांसभक्षि और किंपुरुष। इसी किंपुरुष शाखा के अंतर्गत बंदर वनमानुस और सनुरुय है। इन तीन मे दूसरे जरायुज जीवों से बहुत सी विशेताएँ समानरूप से पाई जाती हैं। तीनो के शरीर मे लंबी लंबी हड्डिया होती हैं जो इनके शाखाचारी जीवन के अनुकूल हैं। इनके हाथों और पैरो मे पॉच पॉच उँगलिया होती हैं। लबी लंबी उँगलियाँ पेड़ो की शाखाओ को पकड़ने के उपयुक्त होती हैं। नख चौड़े होते हैं टेढ़े नुकीले नही। तीनो की दंतावली पूर्ण होती है अर्थात इन्हें चारो प्रकार के दाँत होते है---छेदनदंत, कुकुरदंत, अग्रदंत और चर्वणदंत (चौभर)। किंपुरुष शाखा के प्राणियो के कपाल और मस्तिष्क की रचना में भी विशेषता होती है। इन प्राणियो मे जो काले पाकर अधिक उन्नत हो गए है और जिनका प्रादुर्भाव इस पृथ्वी पर पीछे हुआ है विशेषता अधिक


  • जैसे चूहे, गिलहरी, खरगोश, गाय, बकरी, हिरन आदि भेड़िया, बाय इत्यादि।