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चिपटी नाकवाले कहलाते है और पूर्वीयगोलार्ध या पुरानी दुनिया के पतली नाकवाले। चिपटी नाकवाले वनमानुसो का वंश इधर के पतली नाकवाले वनमानुसो से बिलकुल अलग चला है। वे पुरानी दुनिया ( एशिया, अफ्रिका ) के वनमानुसो की अपेक्षा अनुन्नत हैं। अत मनुष्य एशिया और अफ्रिका के पतली नाकवाले वनमानुसो ही की किसी अप्राप्य श्रेणी से उद्भूत हुए हैं।

एशिया और अफ्रिका में अब तक पाए जानेवाले पतली नाकवाले वनमानुसो के भी दो भेद है, पूंछवाले वनमानुस और बिना पूँछवाले नराकार वनमानुस। बिना पूछवाले मनुष्य जाति से अधिक समानता रखते है। नराकार वनमानुसो के पुट्टे की रीढ़ पॉच कशेरुकाओ के मेल से बनी होती है और पूँछवाले वनमानुसो की तीन कशेरुकाओ के मेल से। दोनो के दाँतो की बनावट मे भी अंतर होता है। सब से बढ़ कर बात तो यह है कि यदि हम गर्भाशय की झिल्ली तथा जरायुज आदि की वनावट की ओर ध्यान देते है तो नरकार वनमानुस मे भी वेही विशेपताएँ पाई जाती है जो मनुष्य मे। एशियाखंड के ओरंगओटंग और गिबन तथा अफ्रिका के गोरिल्ला और चिपाजी नामक वनमानुस मनुष्य से सब से अधिक समानता रखते हैं। अस्तु, मनुष्य और वनमानुस का निकट संबध अब अच्छी तरह सिद्ध हो गया है।

इस बात के प्रमाण में अब कोई संदेह नही रह गया है कि मनुष्य और वनमानुस के शरीर का ढाँचा एक ही है।