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दोनो की ठटरियो में वे ही २०० हड्डियाँ समान क्रम से बैठाई हैं, दोनो मे उन्ही ३०० पेशियो की क्रिया से गति उत्पन्न होती है, दोनो की त्वचा पर रोएँ होते हैं, दोनो के मस्तिष्क उन्ही संवेदनात्मक तंतुग्रंथियो के योग से बने हुए होते हैं, वही चार कोठो का हृदय दानो मे रक्तसंचार का स्पंदन उत्पन्न करता है, दोनों के मुँह मे ३२ दाँत उसी क्रम से होते है, दोनो मे पाचन प्ठीवन ग्रथि, * यकृद्ग्रथि और क्लोमग्रंथि की क्रिया से होता है, उन्ही जननेन्द्रियों से दोनो के वंश की वृद्धि होती है। यह ठीक है कि डीलडौल तथा अवयवो की छोटाई बड़ाई मे दोनो मे कुछ भेद देखा जाता है पर इस प्रकार का भेद ता मनुष्यो की ही समुन्नत और बर्बर जातियो के बीच परस्पर देखा जाता है, यहाँ तक कि एक ही जाति के मनुष्यो मे भी कुछ न कुछ भेद हेाता है। कोई दो मनुष्य ऐसे नही मिल सकते जिनके ओठ, आँख, नाक कान आदि बराबर और एक से हो। और जाने दीजिए दो भाइयो की आकृति मे इतना भेद होता है कि जल्दी विश्वास नही होता कि वे एक ही मातापिता से उत्पन्न है। पर इन व्यक्तिगत भदो से रचना के मूल सादृश्य के विषय मे कोई व्याघात नही होता।


  • अत्यंत सूक्ष्म छोटे छोटे दाने जिनसे थूँक निकलता है।
  • आमाशय की त्वचा पर के सूक्ष्म दाने जिनसे पित्त के समान एक प्रकार का अम्ल रस निकलता है जो भोजन के साथ मिलकर उसे पचाता है।

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