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१७०० वर्ष हुए कि यूरप मे पहले पहल यूनानी हकीम गैलन का ध्यान शरीरव्यापार के कुछ तत्वों की ओर गया। इन तत्त्वो का पता उसने जीते हुए कुत्तो, बंदरो आदि को चीरफाड़कर लगाया था। पर जीवित जंतुओ का चीरना फाडना एक अत्यंत निर्दयता का काम समझा जाता था। परंतु बिना इस प्रकार की चीरफाड किए शरीर के व्यापारो का रहस्य नही खुल सकता है।

सच पूछिए तो १६ वी शताब्दी मे ही शरीर के व्यापारो की ठीक ठीक जाँच यूरप मे कुछ डाक्टरो के द्वारा आरभ हुई। सन् १६२८ में हार्वे ने अपने रक्तसंचारसंबधी आविष्कार का विवरण प्रकाशित कर के यह दिखलाया कि हृदय एक प्रकार का पंप या नल है जो अचेतनरूप से क्षण क्षण पर अपनी पेशियो के आकुंचन द्वारा निरंतर लाल रंग के खून की धारा धमनियो के मार्ग से छोड़ा करता है। जीवधारियो के प्रसवविधान के संबंध मे उसने जो अन्वेषण किए वे भी बड़े काम के थे। पहले पहल उसीने इस नियम का प्रतिपादन किया कि "प्रत्येक जीवधारी गर्भाड से उत्पन्न होता है।" १८ वी शताब्दी के अंत मे हालर ने शरीरव्यापारसंबंधी विद्या को चिकित्साशास्त्र से अलग कर के स्वतंत्र वैज्ञानिक आधार पर स्थिर किया, पर उसने संवेदनात्मक चेतनव्यापारो के लिये एक विशेष 'संविद् शक्ति' का प्रतिपादन किया जिससे 'अभौतिक शक्ति' माननेवालों को भी सहारा मिल गया। १९वीं शताब्दी के मध्य तक शरीरव्यापारविज्ञान मे यही सिद्धांत ग्राह्य रहा कि जीवो के कुछ व्यापार तो भौतिक और रासायनिक कारणो से