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भिन्न शक्तियो की जो उपयुक्त योजना देखी जाती है उसे, भी भूतो के द्वारा संपन्न नही मानते बनता था। ऐसी दशा मे शरीरव्यापारसंबधी विज्ञान मे भी पूरी द्वैतभावना स्थापित हुई। निरिंद्रिय जड़ प्रकृति और सेद्रिय सजीव सृष्टि के बीच, आधिभौतिक और आध्यात्मिक विधानो के बीच, शरीर और आत्मा के बीच, द्रव्यशक्ति और जीवशक्ति के बीच पूरा पूरा प्रभेद माना गया। १९ वी शताब्दी के आरंभ मे भूतातिरिक्तशक्तिवाद की जड़ शरीरव्यापारविज्ञान मे अच्छी तरह जम गई।

१७ वी शताब्दी के मध्य मे प्रसिद्ध फरासीसी तत्त्ववेत्ता डेकार्ट ने हार्वे के रक्त-संचार संबंधी सिद्धांत को लेकर यह प्रतिपादित किया कि और जंतुओं की भांति मनुष्य का शरीर भी एक कल है और उसका संचालन भी उन्ही भौतिक नियम के अनुसार होता है जिनके अनुसार मनुष्य की बनाई हुई मशीन का होता है। साथ ही उसने मनुष्य मे एक भूतातीत आत्मा * का होना भी बतलाया और कहा कि स्वय अपने ही व्यापारो का जो अनुभव आत्मा को होता है ( अर्थात् विचार ) केवल वही ससार मे ऐसी वस्तु है जिसका हमे निश्चयात्मक बोध होता है। उसका सूत्र है कि---"मै विचार करता हूँ इस लिए मै हूँ।" पर यह द्वैत सिद्धांत रखते हुए भी उसने शरीर व्यापार-सबंधी हमारे भौतिक ज्ञान को बहुत कुछ बढ़ाया। डेकोर्ट के बाद ही एक वैज्ञानिक के


• पशुओ मे इस प्रकार की आत्मा डेकार्ट नहीं मानता था Cogito ergo sum (I think therefore I am)