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प्राणियो के अंग-संचालन को शुद्ध भौतिक नियमो का अनुसारी सिद्ध किया और दूसरे ने पाचन और श्वास * की क्रिया का रासायनिक विधान बतलाया। पर उनके युक्तिवाद पर उस समय लोगो ने ध्यान न दिया। शक्तिवाद का प्रचार बढ़ता ही गया। उसका पूर्ण रूप से खंडन तब हुआ जब भिन्न भिन्न जीवो के शरीरव्यापारो का मिलान करनेवाले विज्ञान का उदय हुआ।

तारतम्यक शरीरव्यापारविज्ञान का प्रादुर्भाव १९ वी शताब्दी मे हुआ। बर्लिन विश्वविद्यालय के जोस मूलर नामक उद्भट प्राणिवेत्ता ने ही पहले पहल इस विषय को अपने हाथ मे लिया और २५ वर्ष तक लगातार परिश्रम किया। उसने मनुष्य से लेकर कीटपतंग तक सारे जीवो के अंगो और शरीरव्यापारो को लेकर दार्शनिक रीति से मिलान किया और इस प्रकार वह अपने पूर्ववर्ती आचार्यों से प्राणतत्त्व संबंधी ज्ञान मे बहुत बढ़ गया। मूलर भी अपने सहयोगी शरीरविज्ञानियो के समान शक्तिवादी ही रहा। पर उसके हाथ मे पड़ कर शक्तिवाद का कुछ रूप ही और हो गया। उसने जीवो के समस्त व्यापारो के भौतिक हेतु-निरूपण की। प्रयत्न किया। उसने जिस शक्ति का रूपांतर से प्रतिपादन किया वह प्रकृति के भौतिक और रासायनिक नियमो से परे नही थी, उससे सर्वथा बद्ध थी। उसने इन्द्रियो और मन


• जिससे शरीर के भीतर ऑक्सिजन या प्राणवायु जाती और कारबन निकलता है।