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की क्रियाओ का उसी प्रकार भौतिक हेतु बतलाने का प्रयत्न किया जिस प्रकार पेशियो की क्रियाओ का। मूलर की सफलता का कारण यह था कि वह सदा अत्यंत निम्न कोटि के जीवो के प्राणव्यापार को लेकर चलता और क्रम क्रम से उन्नत जीवो की ओर अपनी अनुसंधान-परंपरा को बढ़ाता हुआ मनुष्य तक ले जाता था। मूलर की मृत्यु के पीछे सन् १८५८ मे उसके विस्तृत विषय के कई विभाग हो गए—मानव और तारतम्यिक अंगविच्छेद-परीक्षा, चिकित्सासंबंधी अंगविच्छेद परीक्षा, शरीरव्यापार विज्ञान और विकाशक्रस का इतिहास।

मूलर के अनेक शिष्यो मे से थिउडरश्वान को सब से अधिक सफलता हुई । १८३८ मे जब प्रसिद्ध उद्भिद्विज्ञानवेत्ता थिउडर श्वान ( Theodor Schwann ) ने घटक को सारे पौधो का संयोयक अवयव बतलाया और सिद्ध किया कि पौधो का सारा तंतुजाल इन्ही घटको के योग से बना है, मूलर ने इस आविष्कार से लाभ उठाने की चेष्टा की। उसने प्राणियो के शरीरतंतुओं को भी इसी प्रकार के योग से संघटित सिद्ध करना चाहा। पर यह कठिन कार्य उसके शिष्य श्वान ने किया। इस प्रकार घटक सिद्धांत की नीवँ पड़ी जिसका महत्त्व अंगविच्छेद, शास्त्र और शरीरव्यापार विज्ञान मे दिन पर दिन स्वीकृत होता गया। इसके अतिरिक्त ब्रुक, ( Earnst Bruke ) और कालिकर ( Albert kolliker ) नामक मूलर के दो दूसरे शिष्यो ने यह दिखलाया कि विश्लेषण करने पर जीवो की समस्त क्रियाएँ शरीरतंतु को संघटित करनेवाले