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आधुनिक जंतुविभागविद्या के अंतर्गत जितने जीव है सब मे स्तनपायी जीव प्रधान है। मनुष्य इसी स्तन्यवर्ग के अंतर्गत है अतः उसमे वे सब लक्षण होने चाहिए जो और स्तन्य जीवो मे होते है। मनुष्यो मे भी रक्तसंचालन तथा श्वास क्रिया उसी प्रकार और ठीक उन्ही नियमो के अनुसार होती है जिस प्रकार और जिन नियमो के अनुसार और स्तन्य जीवो मे। ये दोनो क्रियाएँ हृत्कोश और फुप्फुस ( फेफड़े ) की विशेष बनावट के अनुसार होती है। केवल स्तन्य जीवो में रक्त हृदय के बाएँ कोठे से धमनी की वाम कंडरा ( शाखा ) में प्रवाहित होता है। पाक्षियो मे यह रक्त धमनी की दक्षिण कंडरा से होकर और सरीसृपो मे दोनों कंडराओ से होकर जाता है। दूध पिलानेवाले जीवो के रक्त मे और दूसरे रीढ़वाले जीवो के रक्त से यह विशेषता पाई जाती है कि उसके सूक्ष्म घटको के मध्य मे गुठली (Nucleus ) नही होती। इसी वर्ग के जीवो की श्वासक्रिया अंतरपट ( diapliragm ) के योग से होती है क्योकि इन्ही जीवो मे उदराशय और वक्षआशय के बीच यह परदा होता है। बड़ी भारी विशेषता तो माता के स्तनो मे दूध उत्पन्न होने और बच्चो को पालने के ढंग की है। दूध की बड़ी भारी ममता होती है इसीसे स्तन्य जीवो मे शिशु पर माता का बहुत अधिक स्नेह देखा गया है।

स्तन्य जीवो मे बनमानुस ही मनुष्य से सब से अधिक समानता रखता है, अतः उसमे वे सब लक्षण मिलते हैं जो मनुष्य मे पाए जाते हैं। सब लोग देखते हैं कि किस प्रकार