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चौथा प्रकरण।

गर्भविधान।

तारतम्यक गर्भविधान विद्या की उत्पत्ति भी उन्नीसवीं शताब्दी मे ही हुई है। माता के गर्भ मे बच्चा किस प्रकार बनता है? गर्भाड से जीव कैसे उत्पन्न हो जाते है? बीज से वृक्ष कैसे पैदा होता है? इन प्रश्नो पर हजारो वर्षों से लोग विचार करते आए पर इनका ठीक ठीक समाधान तभी हुआ जब गर्भविज्ञानविद् बेयर (Baer) ने गर्भविधान के रहस्यो को जानने का उचित मार्ग दिखलाया। बेयर से तीस वर्षे पीछे डारविन ने अपने उत्पत्तिसिद्धांत के प्रतिपादन द्वारा गर्भ विधान के परिज्ञान की प्रणाली एक प्रकार से स्थिर कर दी। यहा पर मै गर्भसंबंधी मुख्य मुख्य सिद्धांतो पर ही विचार करूँगा। इस विचार के पहले गर्भवृद्धि-संबंधी प्राचीन सिद्धांतो का उल्लेख आवश्यक है।

प्राचीन का विचार था कि जीवो के गर्भाड मे पूरा शरीर अपने संपूर्ण अवयवो के साथ पहले से निहित रहता है, पर वह इतना सूक्ष्म होता है कि दिखाई नही पड़ सकता, *


  • सुश्रुत ने कई ऋषियो के नाम देकर लिखा है कि कोई कहता है कि गर्भ मे पहले बच्चे का सिर पैदा होता है, कोई कहता है कि हृदय, कोई कहता है नाभि, कोई कहता है हाथ पावँ,