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उल्फ की सच्ची बात की ओर किसी ने ध्यान नहीं दिया क्योंकि प्रसिद्ध वैज्ञानिक हालर बराबर उसका विरोध करता गया। हालर ने कहा––"गर्भ में नए विधानों की योजना नहीं होती। प्राणी के अंग एक दूसरे के आगे पीछे नहीं बनते, सब एक साथ बने बनाए रहते हैं।"

जब सन् १८०६ में जर्मनी के ओकेन ने (जरमनी) ने उल्फ की कही हुई बातों का फिर से पता लगाया तब कई जर्मन वैज्ञानिक गर्भ विधान के ठीक ठीक अन्वेषण में तत्पर हुए। उनमें सबसे अधिक सफलता बेयर को हुई। उसने अपने ग्रंथ में गर्भबीज की रचना का पूरा ब्योरा दिखाया और बहुत से नए नए विचारों का समावेश किया। मनुष्य तथा और दूसरे स्तन्य जीवों के भ्रूण के आकार प्रकार दिखाकर उसने बिना रीढ़वाले क्षुद्र जंतुओं के उत्पत्तिक्रम पर भी विचार किया जो सर्वथा भिन्न होता है। रीढ़वाले उन्नत जीवों के गर्भबीज के गोलचक्र में पत्तो के आकार के जो दो पटल दिखाई देते हैं बेयर के कथनानुसार पहले वे दो और पटलों में विभक्त होते हैं। ये चार पटल पीछे चार कोशों के रूप में हो जाते हैं जिनसे शरीर के चार विभाग सूचित होते हैं––त्वक्‌कोश, पेशीकोश, नाड़ीघट-कोश और लालाकोश।

बेयर का सबसे बड़ा काम मनुष्य गर्भांड का पता लगाना था। पहले लोग समझते थे कि गर्भांशय में डिंभकोश[१] के


  1. ये डिंभकोश गर्भाशय के दोनों ओर होते हैं और पुरुष के अण्डकोश के स्थान पर हैं। जिस प्रकार पुरुष के अण्डकोश के भीतर शुक्रकीटाणु रहते हैं उसी प्रकार इन कोशों के भीतर गर्भांड या रज: कीटाणु रहते हैं।