पृष्ठ:विश्व प्रपंच.pdf/२०५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( ४२ )


का वीर्य भी सूक्ष्म घटको ही का समूह है। उसमे आलपीन के आकार के जो अत्यंत सूक्ष्म वीर्यकीटाणु होते हैं वे रोईदार घटक मात्र है जैसा कि मैने १८६६ मे स्पंज ( मुरदा बादल ) की बीजकलाओ को लेकर निर्धारित किया था। इस प्रकार जीवोत्पत्ति के दोनो उपादानो-पुरुष के वीर्य कीटाणु और स्त्री के गर्भाड---का सामंजस्य घटकसिद्धांत के साथ पूर्णतया हो गया। इस आविष्कार का दार्शनिक सहत्व कुछ दिनो पीछे स्वीकार किया गया।

गर्भसंबंधी विधानो की जॉच पहले पक्षियो के अंडो की परीक्षा द्वारा की गई थी। इस प्रकार की परीक्षा द्वारा हम देख सकते है कि किस प्रकार तीन सप्ताहो के बीच एक के उपरांत दूसरी रचना उत्तरोत्तर होती जाती है। इस परीक्षा द्वारा वेयर को केवल इतना ही पता लगा कि बीजकलाओ की आकृति और अवयवो की सृष्टि का क्रम सब मेरुदंड ( रीढ़वाले ) जीवो मे एक ही प्रकार का है,पर बिना रीढ़वाले असख्य कीटो की गर्भवृद्धि दूसरे ही ढंग से होती है,अधिकांश मे बीज कलाओ के कोई चिन्ह दिखाई ही नहीं पड़ते। थोड़े दिन पीछे कुछ बिना रीढ़वाले कीटो मे भी-जैसे कई प्रकार के सामुद्रिक घोघो और उद्भिदाकार कृमियो मे---ये बीज कलाएँ पाई गई। १८८६ मे कोवास्की ( Kowalewsky ) नामक एक वैज्ञानिक ने एक बड़ी भारी बात का पता लगाया। उसने दिखलाया कि सब से क्षुद्र रीढ़वाले जंतु अकरोटी मत्स्य *


  • जोक के आकार की चार पॉच अगुल लबी एक प्रकार की मछली जो समुद्र के किनारे बालू मे बिल बनाकर रहती है। इसे कड़ी