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ओर वेग से आकर्षित होकर मिल जाती है। इस प्रकार पुरुष और स्त्री गुठलियो के संवेदनात्मक अनुभव द्वारा, जो एक प्रकार के रासायनिक प्रेमाकर्षण (erotic chemico tiopism) के अनुसार होता है, एक नवीन अंकुरघटक की सृष्टि होती है जिसमे माता और पिता दोनो के गुणो का समावेश होता है।

मूलघट के उत्तरोत्तर विभाग द्वारा बीजकलाओ की रचना, द्विकलघट की उत्पत्ति तथा और और अंगो के विधान का क्रम मनुष्यो और दूसरे उन्नत स्तन्य जीवो मे एक ही सा है। स्तन्यजीवो के अन्तर्गत जरायुज जीवो मे जो विशेषताएँ है वे गर्भ की प्रारंभिक अवस्था मे नही दिखाई पड़ती। द्विकलघट के उपरात रज्जुदंड की उत्पत्ति समस्त मेरुदंड जीवो के भ्रूण मे एक ही प्रकार से होती है। भ्रूणपिड की लंबाई के बल बीचोबीच एक पृष्ठरज्जु ( Doreal cord ) प्रकट होती है। फिर इस पृष्ठरज्जु के ऊपर तो बाहरी कला ( झिल्ली) से मज्जा निकल कर चढ़ने लगती है और नीचे आशय ( आमाशय, अंत्र आदि ) प्रकट होने लगते है। इसके अनंतर पृष्ठदंड के दोनो ओर ( दाहिने और बाएँ ) उसकी शाखाओ का विधान होता है और पेशीपटल के ढांचे बनते है जिनसे भिन्न भिन्न अवयवो की रचना आरंभ होती है। आशय के अग्रभाग अर्थात् गलप्रदेश मे गलफड़ो के दो छेद उसी प्रकार के उत्पन्न होते हैं जिस प्रकार के मछलियो मे होते है। मछलियो मे तो ये गलफड़े इसलिये होते है कि श्वास के लिए जो जल मुख के मार्ग से चला जाता है वह इनसे होकर बाहर निकल जाय। पर मनुष्य के भ्रण मे इनका कोई