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प्रयोजन नहीं होता। इनसे केवल यही बात सूचित होती है कि मनुष्य का विकाश भी इन जलचर पूर्वज जीवो से ही क्रमशः हुआ है। इसीसे जलचर पूर्वजो का यह लक्षण मनुष्य मे अब तक गर्भावस्था मे देखा जाता है। कुछ काल पीछे ये गलफडे मनुष्य भ्रूण मे नही रह जाते, गायब हो जाते है। फिर तो इस मत्स्याकार गर्भपिड मे कपाल आदि की विशेषता प्रकट होने लगती है, हाथ पैर के अंकुर निकलने लगते है और आँख, कान आदि के चिह्न दिखाई पडने लगते है। इस अवस्था मे भी यदि मनुष्य भ्रूण को देखे तो उसमे और दूसरे मेरुदंड जीवो के भ्रूण मे कोई विभिन्तता नही दिखाई देती।

मेरुदंड जीवो की तीन उन्नत जातियो ( सरीसृप, पक्षी और स्तन्य ) के भ्रूण झिल्लियो के कोश के भीतर रहते है जो जल से भरा रहता है। इस जल मे भ्रूण पड़ा रहता है और आघात आदि से बचा रहता है। इस जलमय कोश की व्यवस्था उस युग मे हुई होगी जिसमे जलस्थलचारी जीवो से स्थलचारी सरीसृप आदि के पूर्वज उत्पन्न हुए होगे। मछलियो और मेढको के भ्रूण इस प्रकार की झिल्ली से रक्षित नही रहते।

पहले कहा जा चुका है कि मनुष्य जरायुज जीव है। पर जरायु भी एकबारगी नही उत्पन्न हुआ है। पहले उत्पन्न होनेवाले निम्न कोटि के जरायुजो मे चक्रनालयुक्त पूर्ण जरायु का विधान नही होता। उनके गर्भपिड की सारी ऊपरी झिल्ली पर छेददार रोइयाँ सी उभरी होती है