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कुछ विवेचन न कर सका। बाइबिल की बात को मानते हुए उसने यही कहा कि संसार मे उतनी ही योनियाँ दिखाई पड़ती है जितनी के ढॉचे सृष्टि के आरंभ मे ईश्वर ने गढ़े थे। * इस भ्रांत विचार के कारण जीववर्गोत्पत्ति के परिज्ञान के लिए कोई वैज्ञानिक प्रयत्न बहुत दिनो तक नहीं हो सका। लिने को केवल उन्हीं जीवो और उद्भिदो का परिज्ञान था जो इस समय पृथ्वी पर मिलते है। उसे उन जीवो की कुछ भी खबर न थी जो किसी समय इस पृथ्वी पर रहते थे पर अब जिनके केवल अस्थिपंजर भूगर्भ के नीचे दबे मिलते है।

इन पंजरावशिष्ट जीवो की खबर पहले पहल सन १८१२ के लगभग क्यूवियर ने दी। उसने इन अप्राप्य जीवो के संबंध मे एक पुस्तक लिखी जिसमे इनका सविस्तर विवरण दिया। उसने दिखलाया कि इस पृथ्वी पर भिन्न भिन्न कल्पो मे भिन्न भिन्न जीव परंपरानुसार (एक दूसरे के पीछे) रहे है। पर क्यूवियर ने भी लिने के अनुसार भिन्न भिन्न योनियो को अचल और स्थायी माना इससे उसे पृथ्वी के इतिहास मे संहार और नवीन सृष्टि अनेक बार होने की कल्पना करनी पड़ी। उसने बतलाया कि प्रत्येक प्रलय के समय सब जीवो का नाश हो जाता है और फिर से सब नए जीवो की सृष्टि होती है। क्यूवियर का यह 'प्रलयवाद'


  • पुराणो मे तो इन योनियों की गिनती चौरासी लाख बतला दी गई है। उनके अनुसार इतनी ही योनियाँ सृष्टि के आरभ मे उत्पन्न की गई थीं, इतनी ही बराबर रही हैं और इतनी ही रहेगी।