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जल के घनत्व का---------है। १०५ कोस की ऊँचाई पर वायुमंडल भी इतना ही पतली है। उसके आगे वह और भी पतला है *। ईथर उसकी अपेक्षा कम पतला है। यह सारा हिसाब किताब ऊपर ही ऊपर से-प्रकाश और ताप के व्यापार से--लगाया गया है। ईथर पकड़ में आनेवाली द्रव्य नहीं, यह एक अग्राह्य पदार्थ है। वैज्ञानिकों ने इसकी परीक्षा केवल प्रकाश के वाहक के रूप में की है। प्रकाश और ताप का प्रवाह तरंगो के रूप में चलता है। यदि कोई मध्यस्थ नही तो ये तरगे कैसी? विदाकर्षण और अपसारण की व्याख्या भी इस प्रकार के मध्यवर्ती द्रव्य के बीच किसी स्थान पर दबाव मानने से ही अच्छी तरह होनी है। विद्युतप्रवाह की समस्या का समाधान भी मध्यस्थ द्रव्य का स्पंदन माने बिना ठीक ठीक नहीं हो सकता। चुंबक की क्रिया भी किसी मध्यस्थ द्रव्य मे भंँवर या मरोड़ पड़ने के कारण मालूम होती है। सारांश यह कि यह मानना पड़ता है कि प्रकाश, और ताप आदि का वहन करनेवाला कोई एकरस प्रवाहरूप पदार्थ अवश्य है जिसमे तरंगे उठती है, भँवर पड़ते हैं। जिस प्रकार जल में किसी ठोस पदार्थ के पड़ने पर किनारे हटने और फिर आ जाने का गुण है उसी प्रकार ईथर मे भी है । पर यह साधम्र्य होते हुए भी जल मे और इसमे


* पृथ्वी से १२ योजन के आगे जो वायु है उसका हमारे यहाँ के प्राचीन ग्रंथो मे 'प्रवह' नाम है । १२ योजन तक 'आवह' वायु है।