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मे जो भूगर्भस्थपंजर मिले है उनसे इसे वनमानुसी सिद्धांत की पुष्टि अच्छी तरह हो गई है। जरायुज जंतुओ के जो मांसभक्षी खुरपाद और किपुरुष आदि भिन्न भिन्न वर्ग है उनकी परंपरा की श्रृंखला आज कल पाए जानेवाले जंतुओ को देखने से ठीक ठीक नही मिलती थी। बीच मे बहुत से स्थान खाली पड़ते थे। भूगर्भ की छानबीन से अब इन स्थानो की पूर्ति हो गई है, बहुत से ऐसे जतुओ के पंजर मिले है जो उपर्युक्त भिन्न भिन्न वर्गो के मध्यवर्ती जंतु थे। इन जंतुओ को किसी एक वर्ग मे रखना कठिन जान पड़ता है क्योकि इनमें भिन्न भिन्न वर्गों के लक्षण मिले जुले है। पूर्ण जरायुज अवस्था मे आने के पहले की अवस्था के जो क्षुद्र जीव ( पजर ) मिले है उनमे खुरपाद, मांसभक्षी आदि वर्गों के लक्षण मिले जुले हैं। सब के पंजरो का ढॉचा एक सा है, सब ४४ दॉतवाले है, सब का आकार छोटा तथा मस्तिष्क की बनावट अपूर्ण है। तीस लाख वर्ष पहले ये जीव इस पृथ्वी पर थे। जीवसृष्टि क्रम के विचार से कहा जा सकता है कि ये पूर्व-जरायुज जतु भी थैलीवाले मासभक्षी क्षुद्र जंतुओ से जरायु की विशेपता उत्पन्न हो जाने के कारण निकले है।

भूगर्भ की छान बीन से सब से काम की चीजे जो मिली है वे किपुरुषवर्ग के जंतुओ के पंजर है। पहले इन जतुओ के पंजर नही मिलने थे पर अब बहुत से मिल गए है। सब से महत्व का जो पजर मिला है वह जावाद्वीप के बानराकार मनुष्य का है जो १८९४ मे मिला था। उसे न हम ठीक ठीक वनमानुस का पंजर कह सकते है, न मनुष्य का।